दर्शन - भवन

जगद्गुरु स्वामी श्रीमद् रामानन्दाचार्य जी के मंदिर "दर्शन - भवन" का संक्षिप्त इतिहास ।

राम मन्त्र प्रदातारं, प्रपत्ति ज्ञान दायिनम् ।
नामाम्याचार्यवर्यं तं, रामानंदम जगद्गुरुम् ॥
रामानंद के रूप में, राम प्रकट भे आइ ।
तिनके पद वन्दन करौं, ह्रदय भक्ति सरसाइ ॥

      पवित्र आर्य भूमि भारतवर्ष में समय समय पर अनेक अवतारी महापुरुषों का प्रादुर्भाव हुआ है जिन्होंने लोगों में आध्यात्मिकता को जगाकर बुराइयों को जीता और सत्य को प्रतिष्ठित किया। उन सभी महापुरुषों ने सम्पूर्ण मानव जाति का अपने अपने समय में युग की मांग के अनुसार समुचित मार्गदर्शन भी किया है ।
       इस सम्बन्ध में एक सुप्रसिद्ध श्लोक है -

एतत् देश प्रसूतस्य शकाशाद् अग्रजन्मनः ।
स्वं - स्वं चरित्रं शिक्षेरण पृथिव्याः सर्व मानवाः। ।

      अर्थात् भारतवर्ष में पैदा हुए श्रेष्ठ महापुरुषो ने पृथ्वी के सम्पूर्ण मनुष्यो को अपने चरित्र से शिक्षा दिया । इन्ही महापुरुषो में आचार्य रामानन्द का भी विशिष्ट स्थान है ।
      तेरहवी शताब्दी में इस देश पर मुगल आक्रमण हो चुका था । एक तरफ़ मुगलो ने भारत वर्ष के श्रद्धा केन्द्रो (मन्दिरो) पर आक्रमण करके क्षति पहुचाना प्रारम्भ किया । तलवार के बल पर धर्मान्तरण प्रारम्भ किया तो दूसरी तरफ़ यह देश छोटे - छोटे राज - रजवाडो में बांटकर कमजोर होता चला गया। पोषक ही शोषक बन गए ।

 

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