मंदिर की नित्य स्तुति


                       अथ प्रातः स्मरण श्री राम पञ्चकं
ज्ञान मुद्रा धरं रामं सच्चिदानंद विग्रहम
ब्राह्मे मुहूर्ते चोत्थाय चिन्तयेद्रघुनन्दनम
प्रातः स्मरामि रघुनाथ मुखारविन्दं,          
मन्दस्मितं मधुर भाषि विशाल भालम्
कर्णावलम्बि चल शोभि गण्डं,         
कर्णान्त दीर्घ नयनं नयनाभिरामम्
प्रातर्भजामि रघुनाथ करारविन्दं,         
रक्षो गणाय भयदं वरदं निजेभ्यः
यद्राज संसदि विभज्य महेश चापं ,         
सीता कर ग्रहण मङ्गल माप सद्यः
प्रातर्नमामि रघुनाथ पदारविन्दं-         
वज्रान्कुशादि शुभरेखि सुखावहं मे
योगीन्द्र मानस मधुव्रत सेव्यमानं -         
शापापहं सपदि गौतम धर्म पत्न्याः
प्रातः श्रये श्रुतिनुतो रघुनाथ मूर्ति -         
नीलाम्बुदोत्पल सितेतर रत्न नीलाम्
आमुक्त मौक्तिक विशेष विभुषणाढयां-         
ध्येयां समस्त मुनिमिर्निज मुक्ति हेतुम्
प्रातर्वदामि वचसा रघुनाथ नाम -         
वाग्दोष हारि सकलं समलं निहन्तृ
यत्पार्वती स्वपतिना सहभोक्तुकामा          
भक्त्या सहस्र हरिनाम समं जजाप
ये श्लोक पञ्चकमिदं मनुज पठेयुः          
नित्यं प्रभात समये नियताः प्रबुद्धा
श्री राम किंकिर जनेषु एव मुख्या ,         
भूत्वा प्रयान्ति हरिलोक मनन्य लभ्यम्
 

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