पूर्व पीठाधिपति


परमपूज्य ब्रह्मचारी विश्वनाथदास शास्त्री

 
 
तन्त्रानुष्ठान योग अध्यात्म के मर्मज्ञ संत ।
देश ही क्या   जिनका विदेश में भी  नाम है ।
मतिमान   श्रुतिमान,   सांसद   निवर्तमान ।
राष्ट्र और राष्ट्रीयता के पोषक अभिराम हैं ।
सरल   स्वभाव  है   प्रभाव   पूरे  भारत  में ।
अवध   निवास,   भक्तिभाव  निष्काम  हैं ।
पूज्यपाद राष्ट्रसंत महन्त ब्रह्मचारी शास्त्री,
विश्वनाथ   दास,   गुरुदेव   को  प्रणाम  है ।
                         -- श्रीमती ममता शास्त्री मिश्रा 
 
       जगजननी माता जानकी की बाल लीला भूमि सीतामढी जनपद के सिंहवाहिनी ग्राम में पाराशर गोत्रीय ब्राह्मण परिवार में वासंतिक नवरात्रि के पर्व पर (तिथि विष्मृति )1950 में पूज्य श्री विश्व नाथ दास शास्त्री जी महाराज का जन्म हुआ । बाल काल से ही कुछ विलक्षणता महाराज श्री में दिखने लगी थी । प्रत्युत्पन्न बुद्धि भी इनके बाल जीवन से ही दीख रही थी । ऐसे महाराज श्री के बाल्यकाल में ही 'होनहार बिरवान के होत चीकने पात' वाली उक्ति परिलक्षित हो रही थी । श्री महाराज जी को अपने शील स्वभाव के कारण बडे जनों का एवं गुरुजनों का सदैव से स्नेह प्राप्त रहा ।
      श्री महाराज की १३ साल के अल्पवय में मिडिल स्कूल (सप्तम वर्ग) की परीक्षा उत्तीर्ण कर आगे की पढाई जारी करने के उद्देश्य से माता-पिता और श्रेष्ठजनों की अनुमति से अपने गुरुदेव श्री राम सुरेश दास महाराज की कृपा प्राप्त कर उन्हीं के साथ श्री अयोध्या पहुंचे । श्री महाराज जी बताते हैं कि श्री अवध पहुंचकर सरयू स्नान, प्रसिद्ध मंदिरों का दर्शन आदि से उनका मन प्रफुल्लित हुआ । वासंतिक नवरात्र के शुभावसर पर श्रीरामजन्म महोत्सव के दिन वैष्णवी दीक्षा प्राप्त हुई । पूज्य महाराज जी बताते हैं कि प्रारंभ में अयोध्या में मन नहीं लगता था क्योंकि कुछ समय तक आश्रम में उनकी आयु वर्ग का कोई व्यक्ति नहीं था । जो विद्यार्थी रहते थे, वे सभी वार्षिक परीक्षा संपन्न कर छुट्टियों में अपने घर जा चुके थे ।

1 comment:

  1. दुखद समाचार-
    बीजेपी के पूर्व सांसद और अयोध्या स्थित दर्शन भवन मंदिर (स्वामी रामानंद मंदिर) के श्री महंत विश्वनाथ दास शास्त्री का कल लम्बी बीमारी के बाद दिल्ली के एम्स में निधन हो गया। श्री शास्त्री को लीवर और हृदय की बीमारी थी, उनके पार्थिव शरीर को दिल्ली से विमान द्वारा अयोध्या लाने की तैयारी की जा रही है। आज ही उनका अंतिम संस्कार सरयू तट पर होगा।

    सन 1950 में बिहार के सीतामढ़ी जिले में जन्में शास्त्रीजी बचपन से ही आरएसएस से जुड़े रहे और अविवाहित रहे। काशी के संपूर्णानंद विश्वविद्यालय से संस्कृत साहित्य में एमए करने के बाद पूरा जीवन ही संघ और धर्म को समर्पित कर दिया। संघ के विभिन्न दायित्वों का निर्वहन करते हुए वनवासी सेवा केन्द्र के जरिये भी उन्होंने देश की खूब सेवा की। प्रखर ओजस्वी भाषण उनकी पहचान थी।
    अयोध्या से सटे सुल्तानगंज से 1991 में वे बीजेपी की टिकट पर दसवीं लोकसभा के लिए चुने गये। बावजूद इसके उनके सादगी, ईमानदारी देखने लायक थी। पूर्व एमपी के रुप में मिलने वाली अधिकांश सुविधाओं का भी उन्होंने त्याग कर रखा था। जब बीमार पड़े तभी जाकर फिर से मेडिकल सटिफिकेट बनवाया, ताकि एम्स में इलाज हो सके।

    अभी पिछले दिनों संभवतः 4 जून को अयोध्या प्रवास के दौरान उनके दर्शन और सत्संग का लाभ मिला था। शरीर कमजोर था फिर भी आभामंडल देखने लायक थी। उनके साथ बैठकर बातचीत करने और उस दौर की राजनीति को समझने का वो अंतिम मौका मिला था।
    हमारे अग्रज रामगोपाल चौधरी तो बेहद भावुक से हो गये थे। उनको आराम मिले इसलिए कमरे में एसी लगवाने का उसी दिन ऑडर दिया फिर आश्रम में एक वातानुकूलित कमरा बनवाने के लिए भी एक लाख रुपया दिया। तय हुआ था कि नई सीता रसोई जब बनकर तैयार हो तो उसका भव्य उदघाटन कराया जाए। लेकिन नीयती को तो शायद कुछ और ही मंजूर था। चौधरी भैया उनको स्वास्थ्य लाभ के लिए हैदराबाद भी लाना चाहते थे। उन्होंने हामी भी भर दी थी। लेकिन लगता है भगवान अपने बैकुंठ धाम में उनका इंतजार कर रहे थे।

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